यह तो हम सभी जानते हैं कि म्यूचुअल फंड निवेश का एक पॉपुलर तरीका है, जिससे हम अपने पैसे को प्रोफेशनल तरीके से मैनेज कर सकते हैं। लेकिन जब आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, तो आपके पास दो ऑप्शन होते हैं – डायरेक्ट म्यूचुअल फंड और रेगुलर म्यूचुअल फंड। दोनों के बीच सही चुनाव करने के लिए इनके बीच का अंतर समझना जरूरी है।
डायरेक्ट और रेगुलर म्यूचुअल फंड क्या हैं?
म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए एक आकर्षक निवेश साधन है, लेकिन इसमें निवेश करने के दो मुख्य तरीके होते हैं – डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान। दोनों में निवेश का तरीका तो समान होता है, लेकिन लागत, रिटर्न और मध्यस्थ की भूमिका में बड़ा अंतर होता है।

- डायरेक्ट म्यूचुअल फंड: इन्हें आप सीधे एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) से खरीदते हैं और इसमें किसी एजेंट, ब्रोकर या डिस्ट्रीब्यूटर की आवश्यकता नहीं होती है। चूंकि इसमें कोई कमीशन नहीं देना पड़ता, इसलिए इनका एक्सपेंस रेशियो कम होता है, जिससे रिटर्न ज्यादा मिलता है।
- रेगुलर म्यूचुअल फंड: यह उन निवेशकों के लिए होते हैं, जो बैंकों, फाइनेंशियल एडवाइजर या एजेंट्स के माध्यम से निवेश करते हैं। इन इंटरमीडियरीज़ को कमीशन दिया जाता है, जिससे इनका एक्सपेंस रेशियो बढ़ जाता है और निवेशक को थोड़े कम रिटर्न मिलते हैं।
डायरेक्ट और रेगुलर म्यूचुअल फंड के बीच मुख्य अंतर
फीचर | डायरेक्ट म्यूचुअल फंड | रेगुलर म्यूचुअल फंड |
---|---|---|
निवेश का तरीका | सीधे AMC से | ब्रोकर, एजेंट के जरिए |
एक्सपेंस रेशियो | कम (कोई कमीशन नहीं) | ज्यादा (कमीशन शामिल) |
रिटर्न | ज्यादा, क्योंकि खर्च कम है | थोड़ा कम, क्योंकि कमीशन कटता है |
उपलब्धता | AMC की वेबसाइट, ऐप से ऑनलाइन | बैंकों, एजेंट्स के जरिए |
किसके लिए सही? | जो खुद रिसर्च कर सकते हैं | जो गाइडेंस चाहते हैं |
कमीशन | नहीं | हां, एजेंट्स को दिया जाता है |
NAV (नेट एसेट वैल्यू) | ज्यादा | थोड़ा कम |
सलाह और सपोर्ट | नहीं मिलता | एक्सपर्ट गाइडेंस मिलता है |
ट्रांसपेरेंसी | ज्यादा, खुद मैनेज कर सकते हैं | कम, क्योंकि एजेंट शामिल हैं |
निवेश लागत | कम | ज्यादा |
पोर्टफोलियो मैनेजमेंट | खुद करना होता है | एक्सपर्ट की मदद मिलती है |
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रिटर्न पर प्रभाव
मान लीजिए कि कोई निवेशक ₹10 लाख को 12% सालाना रिटर्न देने वाले म्यूचुअल फंड में 20 साल के लिए निवेश करता है। अब यहां यह समझना जरूरी है कि डायरेक्ट फंड और रेगुलर फंड में केवल एक्सपेंस रेशियो (खर्च) के कारण कितना बड़ा अंतर आ सकता है।
- डायरेक्ट फंड (1% एक्सपेंस रेशियो)
अगर निवेशक डायरेक्ट प्लान में निवेश करता है, जहां 1% एक्सपेंस रेशियो लगता है, तो 20 साल बाद उसकी निवेश राशि ₹96.46 लाख हो जाएगी। - रेगुलर फंड (2% एक्सपेंस रेशियो)
वहीं, अगर वही निवेशक रेगुलर प्लान में निवेश करता है, जहां 2% एक्सपेंस रेशियो लिया जाता है, तो 20 साल बाद उसकी निवेश राशि केवल ₹76.12 लाख ही होगी।
यह अंतर ₹20.34 लाख का है, जो केवल 1% अतिरिक्त एक्सपेंस रेशियो के कारण हुआ। यानी, अगर कोई निवेशक डायरेक्ट फंड चुनता है, तो वह बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के लाखों रुपये ज्यादा कमा सकता है। एक्सपेंस रेशियो साल दर साल निवेश की ग्रोथ पर असर डालता है। यह एक छोटे प्रतिशत का खर्च लग सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में कंपाउंडिंग के कारण इसका प्रभाव बहुत बड़ा हो जाता है।
डायरेक्ट म्यूचुअल किसे चुनना चाहिए?
अगर आप म्यूचुअल फंड की अच्छी समझ रखते हैं और खुद रिसर्च करने में सक्षम हैं, तो डायरेक्ट म्यूचुअल फंड आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। डायरेक्ट फंड चुनने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें कम एक्सपेंस रेशियो होता है, जिससे आपकी निवेशित राशि पर ज्यादा रिटर्न मिलता है। अगर आप चाहते हैं कि बिचौलियों पर अतिरिक्त शुल्क न देना पड़े और आपका पैसा अधिक ग्रोथ करे, तो यह सही विकल्प साबित हो सकता है।
यदि आप अपने निवेश को खुद मैनेज करने में रुचि रखते हैं और समय-समय पर फंड्स की परफॉर्मेंस को ट्रैक कर सकते हैं, तो आपको किसी वितरक या एजेंट की जरूरत नहीं पड़ेगी। आज के डिजिटल युग में, ऑनलाइन निवेश करना आसान हो गया है, और कई प्लेटफॉर्म्स पर बिना किसी एजेंट की मदद के निवेश किया जा सकता है। अगर आप ऑनलाइन लेन-देन और निवेश प्रक्रिया को समझते हैं और इस प्रक्रिया में सहज महसूस करते हैं, तो डायरेक्ट फंड में निवेश करना एक स्मार्ट डिसीजन होगा।
रेगुलर म्यूचुअल फंड किसे चुनना चाहिए?
अगर आप नए निवेशक हैं और म्यूचुअल फंड की ज्यादा जानकारी नहीं रखते या निवेश करने का अनुभव नहीं है, तो रेगुलर म्यूचुअल फंड आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। इसमें एक वितरक या फाइनेंशियल एडवाइज़र आपकी मदद करता है, जो आपको सही फंड चुनने से लेकर, निवेश प्रक्रिया को पूरा करने और आगे भी आपके पोर्टफोलियो को मैनेज करने में सहायता करता है।
अगर आप अपने निवेश को खुद मैनेज करने में दिलचस्पी नहीं रखते और चाहते हैं कि कोई एक्सपर्ट आपके लिए सही निर्णय ले, तो रेगुलर फंड सही रहेगा। इसमें एजेंट या वितरक आपकी जरूरतों, जोखिम क्षमता और फाइनेंशियल गोल्स को समझकर आपको सही फंड चुनने में मदद करते हैं।
इसके अलावा, रेगुलर फंड में पूरी सुविधा मिलती है, जिसमें डॉक्युमेंटेशन, फंड ट्रैकिंग और निवेश से जुड़ी अन्य औपचारिकताएं शामिल होती हैं। हालांकि, इस सुविधा के बदले आपको थोड़ा ज्यादा एक्सपेंस रेशियो देना पड़ता है, जिससे संभावित रिटर्न थोड़ा कम हो सकता है। लेकिन अगर आप निवेश में एक्सपर्ट की मदद चाहते हैं और थोड़ा कम रिटर्न के लिए तैयार हैं, तो रेगुलर फंड आपके लिए सही रहेगा।
फाइनल फैसला: कौन सा फंड बेहतर है?
अगर आप लॉन्ग टर्म में ज्यादा मुनाफा चाहते हैं और निवेश को खुद मैनेज कर सकते हैं, तो डायरेक्ट म्यूचुअल फंड बेहतर है।
अगर आप शुरुआती निवेशक हैं और गाइडेंस चाहते हैं, तो रेगुलर म्यूचुअल फंड चुन सकते हैं। हालांकि, लंबे समय में डायरेक्ट प्लान से ज्यादा फायदा होगा।
अगर आपको शुरुआत में समझने में दिक्कत हो रही है, तो पहले रेगुलर म्यूचुअल फंड से शुरू करें, सीखें, और फिर डायरेक्ट फंड में शिफ्ट करें ताकि आपको ज्यादा फायदा हो।