यह तो आप सभी जानते हैं कि म्यूचुअल फंड में निवेश करना एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है, लेकिन कई निवेशक कुछ आम गलतियाँ कर बैठते हैं जिससे उनका रिटर्न प्रभावित होता है। सही रणनीति अपनाकर और इन गलतियों से बचकर आप अपने निवेश को सुरक्षित और लाभदायक बना सकते हैं।
सही रणनीति अपनाएं और इन 8 गलतियों से बचें
म्यूचुअल फंड में निवेश करना आज के समय में अपने पैसे को बढ़ाने और भविष्य में फाइनेंशियल फ्रीडम पाने का एक बेहतरीन तरीका माना जाता है। यह न सिर्फ आपको छोटे-छोटे निवेश के जरिए बड़ा फंड बनाने में मदद करता है, बल्कि मार्केट के उतार-चढ़ाव के बावजूद लॉन्ग टर्म में बेहतर रिटर्न भी देता है। हालांकि, कई निवेशक बिना सही जानकारी के म्यूचुअल फंड में पैसा लगा देते हैं और कुछ आम गलतियाँ कर बैठते हैं, जिससे उनका निवेश जोखिम में पड़ जाता है और उम्मीद के मुताबिक रिटर्न नहीं मिल पाता है।
सही रणनीति अपनाकर और इन गलतियों से बचकर आप अपने निवेश को सुरक्षित और ज्यादा फायदेमंद बना सकते हैं। यह जरूरी है कि निवेश से पहले सही रिसर्च की जाए, अपने फाइनेंशियल गोल्स को समझा जाए। निवेश के दौरान धैर्य रखना, मार्केट को समझना और सही फंड चुनना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है।

अगर आप म्यूचुअल फंड में निवेश करने जा रहे हैं या पहले से निवेश कर चुके हैं, तो आपको यह जानना जरूरी है कि किन-किन गलतियों से बचा जाए ताकि आपका पैसा सुरक्षित रहे और आपको अच्छा रिटर्न मिले।
1. बिना रिसर्च किए निवेश करना
बहुत सारे लोग बिना सही जानकारी लिए या बिना किसी गहरी समझ के म्यूचुअल फंड में पैसा लगा देते हैं। वे अक्सर अपने दोस्त, रिश्तेदार या किसी वित्तीय सलाहकार की सलाह पर भरोसा करके निवेश कर लेते हैं, लेकिन ऐसा करना एक बहुत बड़ी गलती हो सकती है। हर व्यक्ति की वित्तीय स्थिति और निवेश का लक्ष्य अलग होता है, इसलिए किसी और के कहने पर पैसा लगाना सही तरीका नहीं है।
अगर आप म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहते हैं, तो पहले आपको अच्छी तरह रिसर्च करनी चाहिए और यह समझना चाहिए कि कौन सा फंड आपके लिए सही रहेगा। इसके लिए निम्नलिखित बातों की जांच करना बहुत जरूरी है:
फंड का पिछला प्रदर्शन ज़रूर देखें
फंड का पिछला प्रदर्शन यह दिखाता है कि वह बाजार में कितना अच्छा या खराब रहा है। हालांकि, यह जरूरी नहीं कि अगर कोई फंड पहले अच्छा रिटर्न दे चुका है तो आगे भी देगा, लेकिन फिर भी यह एक संकेत जरूर देता है कि फंड की स्थिति कैसी रही है।
- कम से कम 5 से 10 साल का डेटा देखें।
- यह समझें कि जब बाजार में गिरावट आई थी, तब फंड ने कैसा प्रदर्शन किया।
- लगातार अच्छा प्रदर्शन करने वाले फंड्स को प्राथमिकता दें।
- फंड की तुलना उसके कैटेगरी के दूसरे फंड्स से करें।
एसेट अंडर मैनेजमेंट और फंड मैनेजर का अनुभव
AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) का मतलब होता है कि इस फंड में निवेशकों ने कुल मिलाकर कितना पैसा लगाया है। आमतौर पर, ज्यादा AUM वाले फंड्स को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इनमें अधिक लोगों का भरोसा होता है।
- फंड का AUM ज्यादा हो, लेकिन बहुत ज्यादा भी न हो। बहुत बड़ा AUM होने पर फंड का प्रदर्शन धीमा हो सकता है।
- फंड मैनेजर का अनुभव बहुत जरूरी है। कोई भी म्यूचुअल फंड एक व्यक्ति या टीम द्वारा मैनेज किया जाता है, इसलिए यह जानना जरूरी है कि जिस व्यक्ति के हाथ में आपका पैसा है, उसका इस क्षेत्र में कितना अनुभव है।
- फंड मैनेजर की पिछली रणनीतियों और उनके द्वारा मैनेज किए गए अन्य फंड्स का प्रदर्शन भी देखें।
2. सिर्फ रिटर्न देखकर निवेश करना
बहुत से निवेशक म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय सिर्फ यह देखते हैं कि किसी फंड ने पिछले कुछ सालों में कितना अच्छा रिटर्न दिया है। वे मान लेते हैं कि अगर किसी फंड ने पहले अच्छा प्रदर्शन किया है, तो आगे भी करेगा। लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है!
मार्केट में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं और कई बार कोई फंड किसी खास समय में बहुत ज्यादा रिटर्न दे सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह हमेशा अच्छा ही करेगा। इसलिए, सिर्फ पिछले रिटर्न के आधार पर निवेश करना एक बड़ी गलती हो सकती है। आपको यह देखना जरूरी है कि फंड का प्रदर्शन लंबे समय तक स्थिर रहा है या नहीं और इसमें कितना जोखिम है।
फंड की स्थिरता का मतलब यह होता है कि उसने सालों-साल लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है या सिर्फ कुछ समय के लिए ही रिटर्न बढ़ा है।
- कम से कम 5 से 10 साल का प्रदर्शन देखें। यह देखना जरूरी है कि फंड ने मार्केट के अच्छे और बुरे समय में कैसा प्रदर्शन किया।
- अगर कोई फंड एक साल में 50% रिटर्न दे रहा है लेकिन अगले साल -20% चला जाता है, तो यह फंड बहुत ज्यादा अस्थिर है।
- अचानक बहुत ज्यादा रिटर्न देने वाले फंड्स से बचें, क्योंकि हो सकता है कि यह सिर्फ एक अस्थायी उछाल हो।
जोखिम और अस्थिरता का आकलन करें
हर निवेश के साथ जोखिम भी जुड़ा होता है। म्यूचुअल फंड्स में भी कुछ फंड्स बहुत ज्यादा जोखिम वाले होते हैं, जबकि कुछ सुरक्षित होते हैं। इसलिए, आपको यह देखना जरूरी है कि फंड में कितना रिस्क और अस्थिरता है।
- फंड का स्टैंडर्ड डिविएशन: यह एक आंकड़ा होता है, जिससे पता चलता है कि फंड का रिटर्न कितना ऊपर-नीचे होता रहता है। अगर किसी फंड का स्टैंडर्ड डिविएशन ज्यादा है, तो इसका मतलब है कि उसमें जोखिम ज्यादा है।
- बेंचमार्क इंडेक्स से तुलना करें: फंड का प्रदर्शन उसके बेंचमार्क (जैसे Nifty 50, Sensex) के मुकाबले कैसा है? अगर कोई फंड बेंचमार्क से लगातार बेहतर कर रहा है, तो यह अच्छा संकेत हो सकता है।
- जोखिम और रिटर्न का संतुलन: हाई रिटर्न के साथ हाई रिस्क भी होता है। अगर आप कम जोखिम लेना चाहते हैं, तो ऐसे फंड चुनें जिनका जोखिम कम हो और जो स्थिरता से बढ़ रहे हों।
3. बहुत ज्यादा या बहुत कम डाइवर्सिफिकेशन करना
म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय डाइवर्सिफिकेशन बहुत जरूरी होता है। इसका मतलब है कि अपने पैसे को अलग-अलग फंड्स में लगाना ताकि जोखिम कम हो सके। लेकिन कई लोग या तो बहुत कम डाइवर्सिफिकेशन करते हैं या फिर जरूरत से ज्यादा। दोनों ही स्थितियां गलत हो सकती हैं। सही बैलेंस बनाना बहुत जरूरी है ताकि न तो जोखिम ज्यादा हो और न ही रिटर्न पर असर पड़े।
कम डाइवर्सिफिकेशन के नुकसान
अगर आप सिर्फ 1 या 2 म्यूचुअल फंड्स में ही निवेश करते हैं, तो आपका निवेश ज्यादा जोखिम में आ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर उन फंड्स का प्रदर्शन खराब हो गया, तो आपको बड़ा नुकसान हो सकता है।
- अगर आपने सिर्फ एक सेक्टर (जैसे बैंकिंग, आईटी, फार्मा) के फंड्स में निवेश किया और वह सेक्टर गिर गया, तो आपका पूरा निवेश प्रभावित होगा।
- अगर फंड का मैनेजर गलत निर्णय लेता है और फंड का प्रदर्शन गिर जाता है, तो आपके पास कोई और विकल्प नहीं बचेगा।
- जोखिम बहुत ज्यादा बढ़ सकता है, क्योंकि आपका पूरा पैसा कुछ ही फंड्स पर निर्भर रहेगा।
अत्यधिक डाइवर्सिफिकेशन के नुकसान
कुछ लोग सोचते हैं कि जितने ज्यादा फंड्स में निवेश करेंगे, उतना ही सुरक्षित रहेंगे। लेकिन जरूरत से ज्यादा डाइवर्सिफिकेशन भी गलत हो सकता है।
- अगर आप बहुत सारे फंड्स में पैसा लगाते हैं, तो आपका रिटर्न कम हो सकता है, क्योंकि सभी फंड्स मार्केट में एक ही तरह से परफॉर्म करते हैं।
- बहुत ज्यादा फंड्स होने से पोर्टफोलियो मैनेज करना मुश्किल हो जाता है। हर फंड को ट्रैक करना, उनके चार्जेस को समझना और रिटर्न की निगरानी करना जटिल हो सकता है।
- कई फंड्स में निवेश करने से कुछ फंड्स का रिटर्न एक-दूसरे को काट सकता है, जिससे आपको ज्यादा फायदा नहीं होगा।
4. बाजार में गिरावट से डरकर निवेश रोक देना
जब भी शेयर बाजार में गिरावट आती है, तो कई निवेशक डर जाते हैं और अपने म्यूचुअल फंड निवेश को रोक देते हैं या बेच देते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे अभी नहीं बेचेंगे, तो उन्हें और बड़ा नुकसान हो सकता है। लेकिन यह एक बड़ी गलती हो सकती है!
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आना सामान्य बात है। अगर आप हर बार बाजार गिरते ही अपना निवेश रोक देंगे, तो आप लॉन्ग टर्म में अच्छा रिटर्न कमाने का मौका खो देंगे। सही रणनीति अपनाकर और धैर्य रखकर आप इस गिरावट को अपने लिए एक फायदे का सौदा बना सकते हैं।
गिरावट के समय अवसरों को पहचानना
जब बाजार गिरता है, तो अच्छी कंपनियों के शेयर और म्यूचुअल फंड्स सस्ते हो जाते हैं। यह निवेश बढ़ाने का सही समय हो सकता है, क्योंकि जब बाजार फिर से ऊपर जाएगा, तो आपको ज्यादा रिटर्न मिलेगा।
- शेयर बाजार में गिरावट हमेशा स्थायी नहीं होती। कुछ समय बाद बाजार फिर से ऊपर जाता है।
- अगर आपने लॉन्ग टर्म के लिए निवेश किया है (5-10 साल या उससे ज्यादा), तो गिरावट आपके लिए कोई चिंता की बात नहीं होनी चाहिए।
- इतिहास गवाह है कि बाजार हर गिरावट के बाद और मजबूत होकर उभरता है।
5. गलत फंड कैटेगरी का चुनाव करना
म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय सही फंड कैटेगरी चुनना बहुत जरूरी है। हर निवेशक का लक्ष्य और जोखिम सहने की क्षमता अलग-अलग होती है। अगर आप गलत फंड चुनते हैं, तो या तो आपको कम रिटर्न मिलेगा या फिर ज्यादा जोखिम उठाना पड़ेगा। इसलिए, अपने वित्तीय लक्ष्य और जोखिम क्षमता के अनुसार सही फंड का चुनाव करना जरूरी है।
जोखिम सहने की क्षमता का आकलन करें
हर व्यक्ति की रिस्क लेने की क्षमता अलग होती है। कोई ज्यादा जोखिम उठा सकता है, तो किसी को सुरक्षित निवेश पसंद होता है। सही फंड चुनने के लिए यह समझना जरूरी है कि आप कितना जोखिम ले सकते हैं।
- लार्ज-कैप फंड्स: ये फंड्स बड़ी और स्थिर कंपनियों में निवेश करते हैं, जिनका प्रदर्शन आमतौर पर अच्छा रहता है।
- बैलेंस्ड फंड्स (हाइब्रिड फंड्स): ये फंड्स इक्विटी (शेयर बाजार) और डेट (बॉन्ड्स) दोनों में निवेश करते हैं, जिससे जोखिम कम होता है।
- मिड-कैप फंड्स: ये मध्यम आकार की कंपनियों में निवेश करते हैं, जो तेजी से ग्रोथ कर सकती हैं लेकिन इनमें जोखिम ज्यादा होता है।
- स्मॉल-कैप फंड्स: ये छोटे और उभरते हुए व्यवसायों में निवेश करते हैं। इनमें रिटर्न की संभावना ज्यादा होती है, लेकिन साथ ही जोखिम भी बहुत अधिक होता है।
निवेश लक्ष्य के अनुसार फंड चुनें
हर निवेशक का निवेश करने का मकसद अलग होता है। कुछ लोग शॉर्ट टर्म (1-3 साल) के लिए निवेश करते हैं, जबकि कुछ लोग लॉन्ग टर्म (5-10 साल या उससे ज्यादा) के लिए। सही फंड का चुनाव करने के लिए यह जानना जरूरी है कि आपका निवेश लक्ष्य क्या है?
अगर आपका निवेश लक्ष्य शॉर्ट टर्म (1-3 साल) का है
- डेट फंड्स: ये कम जोखिम वाले होते हैं और मार्केट उतार-चढ़ाव से ज्यादा प्रभावित नहीं होते। इन्हें उन निवेशकों के लिए बेहतर माना जाता है जो सुरक्षित रिटर्न चाहते हैं।
- लिक्विड फंड्स: अगर आपको 6 महीने या 1 साल बाद पैसा चाहिए, तो ये एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
अगर आपका निवेश लक्ष्य लॉन्ग टर्म (5-10 साल) का है
- इक्विटी फंड्स: अगर आप ज्यादा समय तक निवेश कर सकते हैं और ज्यादा रिटर्न चाहते हैं, तो इक्विटी फंड्स सही रहेंगे। इनमें बाजार में गिरावट का असर होता है, लेकिन लंबे समय में अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना रहती है।
- इंडेक्स फंड्स: ये कम लागत वाले फंड होते हैं जो लंबे समय में अच्छा रिटर्न देते हैं और नए निवेशकों के लिए बढ़िया विकल्प होते हैं।
6. SIP बंद कर देना या बीच में रोक देना
SIP म्यूचुअल फंड में निवेश करने का सबसे अच्छा और आसान तरीका माना जाता है। यह आपको हर महीने एक तय रकम निवेश करने की सुविधा देता है, जिससे आपका अनुशासन बना रहता है और लंबी अवधि में अच्छा रिटर्न मिल सकता है।
लेकिन कई निवेशक बाजार में उतार-चढ़ाव या किसी वित्तीय कारण से अपनी SIP को बीच में ही बंद कर देते हैं। ऐसा करना एक बड़ी गलती हो सकती है क्योंकि इससे आपको लॉन्ग-टर्म के फायदे नहीं मिल पाते।
- SIP का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह मार्केट के उतार-चढ़ाव से फायदा उठाने का मौका देता है।
- जब बाजार नीचे होता है, तो आपको सस्ते दाम पर ज्यादा यूनिट्स मिलती हैं, और जब बाजार ऊपर जाता है, तो आपका निवेश अच्छा रिटर्न देता है।
- अगर आप SIP बीच में रोक देते हैं, तो आप इस औसत लागत के फायदे को खो देते हैं।
- म्यूचुअल फंड में SIP लंबे समय तक चलाने पर कंपाउंडिंग का जादू काम करता है, जिससे आपको ज्यादा रिटर्न मिलता है।
- अगर आप SIP को बीच में रोक देंगे, तो आपके निवेश पर मिलने वाला ब्याज कम हो जाएगा, और आपको लंबी अवधि में कम रिटर्न मिलेगा।
- उदाहरण के लिए, अगर आप 10 साल तक ₹5,000 प्रति महीने SIP करते हैं और 12% वार्षिक रिटर्न मिलता है, तो आपका फंड ₹11 लाख का निवेश करके ₹11 लाख का मुनाफा कमा सकता है, यानी ₹22 लाख हो सकता है। लेकिन अगर आप इसे 5 साल में ही बंद कर देंगे, तो आपको केवल ₹4-5 लाख का ही मुनाफा मिलेगा।
7. म्यूचुअल फंड के खर्चों को नज़रअंदाज़ करना
म्यूचुअल फंड में निवेश करने का मतलब सिर्फ रिटर्न देखना नहीं होता, बल्कि उसके साथ लगने वाले खर्चों को भी समझना जरूरी होता है। कई निवेशक सिर्फ फंड का अतीत का प्रदर्शन देखकर निवेश कर देते हैं, लेकिन वे यह नहीं देखते कि कौन-कौन से चार्जेस उनके रिटर्न को कम कर सकते हैं।
एक्सपेंस रेश्यो का प्रभाव
एक्सपेंस रेश्यो म्यूचुअल फंड कंपनी द्वारा ली जाने वाली फीस होती है, जो फंड मैनेजमेंट, मार्केटिंग और अन्य खर्चों को कवर करती है। यह फीस हर साल आपके निवेश से काटी जाती है और इसे प्रतिशत (%) में दर्शाया जाता है। अगर किसी फंड का एक्सपेंस रेश्यो 2% है, तो इसका मतलब है कि हर साल आपकी कुल निवेश राशि का 2% फीस के रूप में कट जाएगा।
कम एक्सपेंस रेश्यो वाले फंड चुनने से लॉन्ग-टर्म में आपका रिटर्न बेहतर हो सकता है। आमतौर पर इंडेक्स फंड्स और ETFs का एक्सपेंस रेश्यो कम होता है, जबकि एक्टिव फंड्स का ज्यादा। इसलिए, अगर आप बेहतर रिटर्न चाहते हैं, तो कम लागत वाले फंड्स को प्राथमिकता दें।
डायरेक्ट प्लान बनाम रेगुलर प्लान – कौन सा बेहतर?
म्यूचुअल फंड निवेश में डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान दो विकल्प होते हैं।
- डायरेक्ट प्लान में कोई एजेंट या बिचौलिया नहीं होता, इसलिए इसकी फीस कम होती है, जिससे रिटर्न ज्यादा मिलता है। अगर आप खुद रिसर्च कर सकते हैं और सीधे फंड हाउस से निवेश कर सकते हैं, तो यह प्लान फायदेमंद है।
- रेगुलर प्लान में एजेंट या ब्रोकर की फीस जुड़ती है, जिससे एक्सपेंस रेश्यो बढ़ जाता है और आपका रिटर्न थोड़ा कम हो सकता है। यह उन लोगों के लिए सही हो सकता है, जो खुद रिसर्च नहीं कर सकते और फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद लेना चाहते हैं।
हालांकि, लॉन्ग-टर्म में डायरेक्ट प्लान रेगुलर प्लान से ज्यादा फायदेमंद होता है क्योंकि इसमें कम खर्च होता है और रिटर्न अधिक मिलता है।
8. टैक्स इम्प्लीकेशन को नजरअंदाज करना
म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय कई लोग सिर्फ रिटर्न पर ध्यान देते हैं और टैक्स के असर को नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन अगर सही टैक्स प्लानिंग न की जाए, तो आपकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा टैक्स में चला सकता है। इसलिए यह समझना जरूरी है कि म्यूचुअल फंड्स पर कितना और कैसे टैक्स लगता है और इसे कम करने के क्या तरीके हैं।
इक्विटी फंड्स पर टैक्स – अगर आप किसी इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं और उसे एक साल के बाद बेचते हैं, तो निर्धारित सीमा तक के मुनाफे पर कोई टैक्स नहीं लगता। लेकिन अगर मुनाफा उससे ज्यादा होता है, तो उस पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स देना होता है। इसलिए बेहतर होगा कि हर साल बिना टैक्स की निर्धारित सीमा तक लाभ निकालें ताकि आपको कोई टैक्स न देना पड़े।
डेट फंड्स पर टैक्स – पहले डेट फंड्स में इंडेक्सेशन का फायदा मिलता था, जिससे टैक्स कम हो जाता था। लेकिन अब नए नियमों के तहत डेट फंड्स पर आपकी इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स लगेगा, जैसे कि फिक्स्ड डिपॉजिट पर लगता है। अगर आप ज्यादा टैक्स स्लैब में आते हैं, तो डेट फंड्स आपके लिए महंगे साबित हो सकते हैं।
टैक्स बचाने के विकल्प – अगर आप टैक्स बचाना चाहते हैं, तो ELSS सबसे अच्छा ऑप्शन है। यह एक इक्विटी म्यूचुअल फंड होता है, जिसमें आपको सेक्शन 80C के तहत टैक्स छूट मिलती है। इसका लॉक-इन पीरियड सिर्फ 3 साल है, जो बाकी टैक्स सेविंग ऑप्शन जैसे PPF या FD की तुलना में कम है।
इसलिए निवेश करते समय सिर्फ रिटर्न ही नहीं, बल्कि टैक्स के असर को भी ध्यान में रखें। सही टैक्स प्लानिंग से आप अपनी बचत बढ़ा सकते हैं और ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
म्यूचुअल फंड में निवेश करना एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है, लेकिन इन गलतियों से बचकर ही आप अपने निवेश को सफल बना सकते हैं। सही रिसर्च करें, अपने वित्तीय लक्ष्यों को ध्यान में रखें, और लॉन्ग टर्म सोच के साथ निवेश करें।
अगर आपको यह जानकारी उपयोगी लगी हो तो इसे दूसरों के साथ भी शेयर करें ताकि वे भी इन गलतियों से बच सकें।